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भस्त्रिका प्राणायाम

भस्त्रिका प्राणायाम (Bhastrika Pranayama), प्राणायाम के प्रकारों में एक हैं। इस क्रिया में भी सांस के माध्यम से शारीरिक शोधन किया है। इस लेख में हम भस्त्रिका प्राणयाम क्या है?, यह प्राणायाम क्यों जरूरी है?, इसे करने की विधि क्या है?, भस्त्रिका प्राणायाम करते समय किन बातों का ध्यान रखें और इसे करने से आसनकर्ता को क्या लाभ मिलता है? इसके बारे में जानेंगे, जो आइये जानते हैं भस्त्रिका प्राणायाम के बारे में -

भस्त्रिका प्राणायाम क्या है?

भस्त्रिका प्राणायाम में सांस की गति धौंकनी की तरह तेज हो जाती है। यानी कि इस प्रक्रिया में सांस को जल्दी-जल्दी लेने की क्रिया को ही भस्त्रिका प्राणायाम कह जाता है। सबसे पहले हम इसके शाब्दिक अर्थ के बारे में बात करते हैं। भस्त्रिका का शाब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसके प्रक्रिया में लोहार की धौंकनी के समान आवाज़ करते हुए गति के साथ शुद्ध प्राण वायु को भीतर लिया जाता है और अशुद्ध वायु को उसी गति के साथ बाहर निकाला जाता है। कहते हैं कि इस प्राणायाम को करने से पूर्व यदि पदाधीरासन का अभ्यास किया जाए तो काफी फ़ायदेमंद होता है।

धौंकनी क्या हैं? – धौंकनी चमड़े से बना हुआ एक थैलीनुमा उपकरण है। इसका उपयोग लोहार करते हैं। इसे बार बार खोलकर बंद करने से और इसे दबाने से उसके अंदर भरी हुई हवा नीचे लगी हुई नली के रास्ते आग तक पहुँचती है और उसे दहकाने का काम करती है।

एक तरह से प्राणायाम जीवन का रहस्य है। सांसों के आने जाने पर ही हमारा जीवन निर्भर करता है। ऑक्सीजन की कमी ही हमारे लिए रोग और शोक उत्पन्न करता है। आज के प्रदूषण भरे माहौल और चिंता से हमारी सांसों की गति अपना स्वाभाविक रूप खो चुकी है, ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसी के कारण जब हमें सांस की अधिक आवश्यकता होती है तो उस समय में यह हमारा साथ नहीं दे पाती है।

भस्त्रिका प्राणायाम (Bhastrika Pranayama) क्यों है जरूरी?

व्यक्ति का जैसे जैसे विकास होता है, वैसे-वैसे हम पेट भरके सांस लेना छोड़ देते हैं। इसकी एक वजह ये भी होती है कि हम अत्यधिक सोचने के कारण पूरी तरह से यूं कहे कि जी भर के सांस लेना छोड़ देते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि हम वर्तमान में जिस तरह की

जीवनशैली जी रहे हैं। इसी के चलते जैसे-तैसे सांस हमारी फेफड़ों तक पहुँच पाती है। जिससे हमारे शरीर को उचित मात्रा ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है। प्राण वायु की कमी के कारण जल और भोजन के लाभकारी गुण और पोषक तत्व हमें नहीं मिल पाते हैं।

यह अस्वाभाविक जीवनशैली हमारे भीतर नकारात्मक ऊर्जा का संचार कर हमें जीवन का आनंद से रोकती है कहे तो इसमें बाधा उत्पन्न करती है। भस्त्रिका प्राणायाम से दिल और दिमाग को सही मात्रा में ऑक्सीजन मिल पाता है इसके कारण आसनकर्ता सेहतमंद बना रहता है जोकि जीवन को सही दिशा में ले जाने व लंबी आयु जीने के लिए आवश्यक है। 

भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि

अब तक आपने भस्त्रिका प्राणायाम के बारे कई रोचक व महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर चुकें हैं। अब हम आपको भस्त्रिका प्राणायाम कैसे करें इसके बारे में चरण बद्ध तरीके से जानकारी देने जा रहे हैं जो आपके लिए काफी सहायक होगा।

  1. पहले चरण में आपको पद्मासन या फिर सुखासन में बैठना है और अपने कमर, गर्दन, पीठ एवं रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर को स्थिर रखना है।
  2. दूसरे चरण में आपको शरीर को बिना हिलाए दोनों नासिका छिद्र से आवाज़ करते हुए सांस भरें और आवाज़ करते हुए ही सांस को बाहर छोड़ें। फिर से तेज गति से आवाज़ लेते हुए सांस भरें और बाहर छोड़ें। यही क्रिया भस्त्रिका प्राणायाम (Bhastrika Pranayama) कहलाती है।
  3. आसनकर्ता अपने दोनों हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखकर अपनी आँखें बंद करना है। ध्यान रहे, सांस लेते व छोड़ते समय हमारी लय ना टूटे।

भस्त्रिका प्राणायाम करते समय बरतें ये सावधानियाँ

इस प्रक्रिया को करते समय आसनकर्ता को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होता है। अन्यथा आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

  1. अगर आसानकर्ता को इस प्रक्रिया को करते हुए काफी समय हो गया है तो वह क्रिया के चक्रों को बढ़ाने से पूर्व योग प्रशिक्षक की सलाह जरूर लें।
  2. इस व्यायाम का अभ्यास दमा, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप या ज्वर होने पर न करें। अपने चिकित्सक से परामर्शर करें।
  3. मीर्गी स्ट्रोक व हार्निया वाले रोगी इस का अभ्यास चिकित्सक व योग विशेषज्ञ की सलाह पर ही करें।  
  4. गर्भवती महिलाओं को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।

भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ

 

भस्त्रिका-प्राणायाम करने के कई तरह के लाभ हैं जिनमें से कुछ के बारे में हम यहां जानकारी दे रहे हैं।  

  1. भस्त्रिका प्राणायाम शरीर व मन को तरो-ताजा करता है। इसका शरीर पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। ऊर्जा संचार करता है।
  2. इस क्रिया को करने से आसनकर्ता के स्मरण शक्ति में सुधार होता है। विवेक तेज होता है।
  3. इस प्राणायाम का अभ्यास करने से रक्त संचरण तेज हो जाता है। जिससे रक्तापूर्ति तेज हो जाती है। नेत्र के ज्योति और श्रवण शक्ति बढ़ाती है।
  4. सांस को तेजी से भरने की प्रक्रिया के कारण फेफड़े मजबूत हो जाते हैं। फेफड़े स्वच्छ हो जाते हैं।
  5. इससे पाचन क्रिया में सुधार होता है। जिससे बदहजमी व कब्ज जैसी समस्याओं से राहत मिलता है।
  6. भस्त्रिका प्राणायाम (Bhastrika Pranayama) से चर्बी विशेष रूप से अति तीव्रता से घटती है।
  7. यह सूर्य-जालिका और मणिपुर चक्र को भी जागृत करती है।