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अनुलोम विलोम

अनुलोम विलोम (Anulom Vilom) एक तरह से नाड़ी शोधन क्रिया के तरह ही काम करता है। आप यह भी कह सकते हैं कि ये दोनों समान हैं। यह शारीरिक शुद्धि क्रिया है, जिसमें सांस के माध्यम से इसे किया जाता है। इस लेख में हम अनुलोम विलोम क्या है?, इसे कैसे करें?, अनुलोम विलोम करते समय किन बातों का ध्यान रखें? और अनुलोम विलोम करने के क्या लाभ हैं? इसके बारे में जानेंगे। तो आइये जानते हैं अनुलोम विलोम के बारे में -

अनुलोम विलोम क्या है?

यदि अनुलोम विलोम का शाब्दिक अर्थ देखा जाए तो अनुलोम का अर्थ है सीधा और विलोम का है उल्टा। यहां सीधा का अर्थ नासिका यानी की नाक से है नाक का दाहिना छिद्र और उल्टे का तातपर्य है नाक के बायें छिद्र से हैं। अनुलोम-विलोम प्राणायाम का एक रूप है इसमें नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचकर, नाक के बायें छिद्र से सांस बाहर छोड़ते हैं। यदि प्रक्रिया दूसरे के लिए भी दोहराया जाता है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम को कुछ योगीगण नाड़ी शोधक प्राणायाम भी कहते हैं।

अनुलोम विलोम कैसे करें?

सवाल यह उठता है कि अनुलोम विलोम करे कैसे? इस सवाल का जवाब हम यहां दे रहे हैं। नीचे हम अनुलोम विलोम करने की विधि बता रहे हैं, जो आपके लिए काफी सहायक होगा।
सबसे पहले अभ्यासकर्ता को किसी निश्चित पहर का चुनाव करना होता है। शास्त्रों में किसी भी चीज का अभ्यास करने के लिए प्रातःकाल का वक्त श्रेष्ठ माना जाता है। आप योग अभ्यास करने के लिए सुबह के साथ शाम का भी समय तय कर सकते हैं। लेकिन सुबह की ताजी हवा के बीच अनुलोम विलोम (Anulom Vilom) का अभ्यास ज्यादा कारगर तरीके से आपको स्वस्थ रखने का काम करता है।

  1. पहले चरण में आपको साफ जगह देख कर आसन (मेट) बिछा लें। अभ्यासकर्ता को ध्यान रखना है कि अनुलोम विलोम क्रिया को करने के लिए दाएं हाथ के अंगूठे और दाएं हाथ की मध्यमा उंगली को ही उपयोग में लाना है।
  2. दूसरे चरण में अभ्यासकर्ता को पद्मासन की मुद्रा में बैठना होता है। इस मुद्रा में आने के लिए बाएं पैर के पंजे को दाईं जांघ पर और दाएं पैर के पंजे को बाईं जांघ पर रखा जाता है। यदि अभ्यासकर्ता पद्मासन की मुद्रा में नहीं बैठ सकते, वो सुखासन मुद्रा में बैठ सकते हैं।  जिनके लिए ज़मीन पर बैठना कठिन है, वो कुर्सी पर बैठे सकते हैं।
  3.  तीसरे चरण में अभ्यासकर्ता को अपनी कमर सीधी रखकर अपनी दोनों आँखें बंद करनी होती है।
  4.  चौथे चरण में गहरी सांस लें और धीरे-धीरे छोड़ दें। इसके बाद स्वयं को एकाग्र करने की कोशिश करें।
  5.  पाँचवें चरण में अभ्यासकर्ता को अपने दाहिने हाथ के अँगूठे से अपनी दाहिनी नसिका को बंद करना चाहिए और बायीं नसिका से धीरे-धीरे गहरी सांस लें। जितना हो सके सांस उतनी ही गहरी सांस लें, जोर न लगाएँ।
  6.  छठें चरण में अभ्यास करने वाले व्यक्ति को अव अपने दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली से बायीं नसिका को बंद करना है और दायीं नसिका से अँगूठे को हटाते हुए धीरे-धीरे सांस छोड़ना है। जितना आराम से हो सके उतने आराम से सांस छोड़ें और कुछ सेकंड का विराम लेकर दायीं नसिका से गहरी सांस लें। 
  7.  सातवें चरण में अब आपको अपने दाहिने अँगूठे से दाहिनी नसिका को बंद करके, बायीं नसिका से दाहिनी हाथ की मध्य उंगली को हटाकर धीरे-धीरे सांस छोड़ें।

इस प्रकार अनुलोम-विलोम क्रिया का एक चक्र पूरा हो जाएगा। आप एक समय में पांच से सात बार यह क्रिया कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को आप रोज करीब 10 मिनट करें।

अनुलोम विलोम की सावधानियां

अनुलोम विलोम (Anulom Vilom) करते समय अभ्यास करने वाले व्यक्ति को कुछ सावधानियों का भी ख्याल रखना चाहिए। जिससे वे किसी भी तरह के संभावित समस्या से बच सकें। यहां हम कुछ सावधानियां बताने जा रहे हैं जो आपके लिए लाभप्रद होगें।

  1. अनुलोम विलोम करने से पहले इस बात विशेष ध्यान रखें कि यदि आपको कमजोर महसूस हो रही है या जो अभ्यासकर्ता को एनीमिया से पीड़ित है उन्हें इस क्रिया के दौरान सांस लेने और सांस निकालने की बारंबारता अधिकतम चार से पांच ही रखें। यानी की चार से पांच गिनती में सांस को भरना है इतने में ही  सांस को बाहर निकालना है।
  2. सेहतमंद अभ्यासकर्ता यथाशक्ति इस क्रिया की संख्या बढ़ा सकते हैं।
  3. लोग समयाभाव के कारण सांस भरने और सांस निकालने का अनुपात 1:2 नहीं रखते। वे बहुत तेजी से और जल्दी-जल्दी सांस भरते और निकालते है। इससे वातावरण में व्याप्त धूल, धुआँ, जीवाणु और वायरस, सांस नली में पहुँचकर अनेक प्रकार के संक्रमण को पैदा कर सकते है।
  4. अनुलोम विलोम करते समय श्वास की लय इतनी आरामदायक होनी चाहिए कि इसे करते समय स्वयं को भी श्वास की ध्वनी न सुनायी दें।

अनुलोम विलोम के लाभ

अनुलोम विलोम करने के कई लाभ शास्त्रओं में बताए गए हैं जिनमें से कुछ हम यहां आपके लिए दे रहे हैं। जो इस प्रकार हैं-

  1. अनुलोम विलोम नियमित अभ्यास करने से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है यानी वे स्वच्छ व निरोग बनी रहती है।
  2. नाड़ी बाधा मुक्त होने से शरीर में ऊर्जा का संचार अच्छे से होगा है। जिससे आप शारीरिक रूप से मजबूत बनते हैं।
  3. अनुलोम विलोम प्राणायाम के अभ्यासकर्ताओं को वृद्धावस्था में भी गठिया, घुटनों के दर्द व सूजन आदि समस्याएं नहीं होती हैं।
  4. अभ्यासी के शरीर में उचित मात्रा मे शर्करा बनाता है। जिससे शरीर में शर्करा का स्तर सामान्य व नियंत्रण में रहता है।
  5. इसके अभ्यास के सांस लेने में हो रही कठिनाई से निजात मिल सकती है।
  6. शरीर में प्राण वायु का स्तर सामान्य बना रहा है। जिससे आपका मस्तिष्क सचेत रहता है।
  7. अनुलोम विलोम (Anulom Vilom) करने से मानसिक शांति मिलती है। व्यक्ति को तनाव से छुटकारा मिलता है।