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दक्षिण पश्चिम दिशा

दक्षिण- पश्चिम के मध्य दिशा को नैऋत्य दिशा कहते हैं। नैऋत्य दिशा के स्वामी राहू तथा देवी निरित्ती हैं। राहू को छाया ग्रह माना गया है। गरूण पुराण के अनुसार निरित्ती का शरीर काला और भीमकाय है। ये बहुत ही क्रूर हैं। इसलिए इस दिशा को ऊंचा और भारी रखा जाता है। निरित्ती मनुष्य की सवारी करती हैं। इस दिशा का शुभ – अशुभ दोष गृहस्वामी, उसकी पत्नि और बड़े संतान पर पड़ता है। दोष होने पर दुर्घटना, रोग, मानसिक अशांति, भूत-प्रेत बाधा आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दिशा दोष मुक्त होने पर भवन में रहने वाले लोग सेहतमंद रहते हैं एवं उसके मान सम्मान में भी वृद्धि होती है। वास्तु की भाषा में नैऋत्य दिशा को बहुत ही निकृष्ट माना गया है। इसे दुर्भाग्य व नरक की दिशा भी कहते हैं।

भवन निर्माण के दौरान बरते ये सावधानियां

नैऋत्य मुखी भवन निर्माण के दौरान ही चांदी, सोना, तांबा या लौह धातु के बने दो नागों के जोड़े को नींव में गाड़ देना चाहिए। जिससे राहू व निरित्ती तृप्त रहते हैं और भवन में निवास करने वाले इनके प्रभाव से सुरक्षित रहते हैं। वास्तु के अनुसार दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र यानि नैऋत्य कोण पृथ्वी तत्व का प्रतीक है। इसलिए यहाँ शस्त्रागार तथा गोपनीय वस्तुओं के संग्रह हेतु तहखाना या कमरे का निर्माण करवाना चाहिए। पृथ्वी तत्व होने की वजह से यह कोण स्थायित्व प्रदान करता है। नैऋत्य कोण से वैवाहिक जीवन में सफलता व असफलता भी देखने को मिलता है। इसीलिए इस कोण में मुख्य शयन कक्ष बनाने का विधान है। 

नैऋत्य मुखी भवन में मुख्य द्वार दक्षिणी नैऋत्य एवं पश्चिमी नैऋत्य दोनों ही दिशा में शुभ नहीं माने जाते हैं। क्योंकि यह शस्त्रु की दिशा मानी जाती है, इसलिए मुख्य द्वार इस दिशा में नहीं वरन पश्चिम वायव्य दिशा में बनाना चाहिए। नैऋत्य दिशा में खिड़की और दरवाजे या तो बिलकुल भी ना हो और यदि हो तो ज्यादातर बंद ही रहने चाहिए । एक बड़ा द्वार ईशान कोण में भी जरूर बनाना चाहिए। नैऋत्य मुखी भवन में शुक्ल पक्ष के किसी अच्छे मुहूर्त में शनिवार को संध्या के समय ताम्बे से बने राहु यंत्र को स्थापित करना चाहिए। इससे इस दिशा के कमरे के दाहिनी तरफ टांगना चाहिए अथवा किसी उचित जगह तांबे के कील से ही लगाना चाहिए।

नैऋत्य मुखी भवन के सम्मुख भाग में चारदीवारी से मिलाकर ही निर्माण कराना चाहिए। इस दिशा में खाली स्थान बिलकुल भी नहीं छोड़ना चाहिए। नैऋत्य मुखी भवन के सामने वाले हिस्से में बनाये गए कक्ष का फर्श एवं उसकी ऊंचाई दोनों ही ज्यादा होनी चाहिए एवं इस कोण के कक्ष की दीवारे भी यथा संभव मोटी रहनी चाहिए । नैऋत्य कोण में बने कक्ष में सदैव भारी और अनुपयोगी सामान ही रखना चाहिए । नैऋत्य कोण के बढ़े होने से असहनीय स्वस्थ्य पीड़ा व अन्य गंभीर परेशानियां पैदा होती हैं और यदि यह खुला रह जाये तो ना- ना प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। नैऋत्य कोण में खाली जगह, गड्डा या कांटे वाला वृक्ष हो तो घर में बीमारीयां आती हैं और आर्थिक व शत्रु पक्ष से परेशानी होती है। इसलिए नैऋत्य दिशा भवन निर्माण से पूर्व वास्तुविद से सलाह अवश्य लें।