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वास्तु दोष

वास्तु शास्त्र में दस दिशाओं का उल्लेख है, जिनमें चार दिशा, चार विदिशा तथा आकाश व पाताल शामिल हैं। भवन निर्माण यदि वास्तु नियमों के अनुसार हुआ है तो यह सुख, शांति और सकारात्मक परिणाम देता है। परंतु निर्माण कार्य के दौरान किसी प्रकार का वास्तु दोष रह जाता है तो जीवन में तनाव, अशांति, पारिवारीक कलह, धन की समस्या आदि कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते है कि घर के किस दिशा व कोण में वास्तुदोष होने पर इसका क्या असर पड़ता है। तो आईये हम आपको बताते है कि भवन के किस दिशा व कोण में वास्तुदोष होने पर भवन में रहने वाले लोगों पर इसका क्या प्रभाव होगा है।

पूर्व दिशा वास्तु दोष

वास्तु में पूर्व दिशा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि यह सूर्योदय की दिशा है। यहां से भवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। वास्तु के अनुसार यदि अन्य दिशाओं की अपेक्षा भवन का पूर्वी हिस्सा ऊंचा है तो गृह स्वामी दुखी और आर्थिक तंगी से जूझता है। तो वहीं ऐसे घर में संतानें रोगी और मंदबुद्धि होती हैं।

उत्तर दिशा वास्तु दोष

वास्तु शास्त्र में पूर्व के समान उत्तर दिशा को खाली और भार मुक्त रखना शुभ माना गया है। इस दिशा के स्वामी कुबेर हैं जो धन के देव हैं। इस दिशा का कोई कोना कटा न हो तथा भूमि ऊंची न हो। वास्तु दोष होने पर आर्थिक पक्ष कमजोर और धन अधिक व्यय होता है।

दक्षिण दिशा वास्तु दोष

यह दिशा वास्तु शास्त्र के अनुसार सुख और समृद्धि का प्रतीक है। घर के मुखिया के लिए यह दिशा सर्वाधिक उपयुक्त है। इसलिए इस दिशा में घर के मुखिया को निवास करना चाहिए। दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर मान- सम्मान, प्रतिष्ठा में कमी आती है एवं रोजगार, व्यवसाय तथा स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

पश्चिम दिशा वास्तु दोष

भवन के पश्चिम दिशा में वास्तु दोष होने पर भवन में निवास करने वालों को रोग से पीड़ित, धन हानि और अकाल मृत्यु का खतरा बना रहता है।

ईशान दिशा वास्तु दोष

यह दिशा विवेक, धैर्य, ज्ञान,भक्ति वैराग्य, बुद्धि आदि प्रदान करती है। वास्तु में ईशान दिशा को बेहद शुभ व अति संवेदनशील माना गया है। इस दिशा में दोष होने पर धन-संपत्ति व सुख का नाश और दुर्भाग्य का निर्माण होता है। अकारण विपत्ति का सामना करना पड़ता है।

नैऋत्य दिशा वास्तु दोष

इस दिशा का शुभ– अशुभ प्रभाव गृहस्वामी, उसकी पत्नि और बड़े संतान पर पड़ता है। दोष होने पर दुर्घटना, रोग, मानसिक अशांति, भूत-प्रेत बाधा आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है और असहनीय स्वस्थ्य पीड़ा, आर्थिक व शत्रु पक्ष से परेशानियां पैदा होती है।

वायव्य दिशा वास्तु दोष

इस दिशा में भवन निर्माण वास्तु नियम के अनुरूप हो तो वह गृह स्वामी को बहुत धनवान बनाता है, परंतु दोषपूर्ण निर्माण होने पर मान- सम्मान एवं यश में कमी आती है। लोगों से अच्छे सम्बन्ध नहीं बन पाते हैं तथा कानूनी मामलों में भी उलझना पड़ सकता है।

अग्नेय दिशा वास्तु दोष

यह दिशा अग्नि प्रधान होती है और आग्नेय कोण का मूल तत्व अग्नि है। यदि भवन का निर्माण वास्तुसम्मत हुआ है तो इस दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र अति प्रसन्न होते हैं। जिससे घर में सकारात्मक वातावरण बना रहता है। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर घर का वातावरण तनावपूर्ण रहता है। पाचन संबंधी रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।

आकाश दिशा वास्तु दोष

वास्तु शास्त्र के अनुसार भगवान शिव आकाश के स्वामी हैं। इसके अतंर्गत भवन के आसपास स्थित वस्तु जैसे वृक्ष, भवन, खंभा, मंदिर आदि की छाया का प्रभाव भवन में रहने वाले लोगों पर पड़ता है।

पाताल दिशा वास्तु दोष

भवन के नीचे दबी हुई वस्तुओं का सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव भवन और उसमें रहने वाले लोगों पर होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार दोष होने पर भवन में रहने वाले का मन अशांत रहता है और आर्थिक तौर कठनाईयों का सामना करना पड़ता है।