SanatanMantra SanatanMantra
भाषा
English हिन्दी
Home आरती चालीसा कथा ईश्वर जगह स्ट्रोतम सुंदरकाण्ड परंपरा वास्तु चक्र रत्न राशिफल मंत्र ध्यान अंक ज्योतिष ग्रह ग्रहों पूजा विधि रूद्राक्ष टैरो शादी यंत्र योग ग्रंथ UPSC App
hanuman lanka dahan samvad

लंका दहन कर लौटे हनुमान


॥दोहा 25॥

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।

अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास॥

 

॥चौपाई॥

देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥

जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला॥

तात मातु हा सुनिअ पुकारा। एहिं अवसर को हमहि उबारा॥

हम जो कहा यह कपि नहिं होई। बानर रूप धरें सुर कोई॥

साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥

जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥

ताकर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥

उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥

 

॥दोहा 26॥

पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।

जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि॥

 

॥चौपाई॥

मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥

चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ॥

कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥

दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी॥

तात सक्रसुत कथा सनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु॥

मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा॥

कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना। तुम्हहू तात कहत अब जाना॥

तोहि देखि सीतलि भइ छाती। पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती॥

 

॥दोहा 27॥

जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।

चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह॥

 

॥चौपाई॥

चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥

नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥

हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना॥

मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचंद्र कर काजा॥

मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥

चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥

तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए॥

रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥

 

॥दोहा 28॥

जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज।

सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज॥

 

॥चौपाई॥

जौं न होति सीता सुधि पाई। मधुबन के फल सकहिं कि काई॥

एहि बिधि मन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा॥

आइ सबन्हि नावा पद सीसा। मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा॥

पूँछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपाँ भा काजु बिसेषी॥

नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना। राखे सकल कपिन्ह के प्राना॥

सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ। कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ॥

राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा॥

फटिक सिला बैठे द्वौ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई॥

 

 

भावार्थ - हनुमान जी अपनी विशालकाय देह से एक भवन से दूसरे भवन पर जाने लगे और देखते ही देखते पूरी लंका धधकने लगी। विभीषण के घर को छोड़कर सारी लंका जलने लगी। हर और हाहाकार मच गया। अब हनुमान अतिसूक्ष्म रुप कर समुद्र में कूद गए और देखा कि पूंछ का एक बाल भी नहीं जला। अब हनुमान सीधे माता सीता के पास पहुंचे और हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और श्री राम को देने के लिये कोई निशानी मांगी। माता सीता ने अपनी चूड़ामणि उतार कर हनुमान को दी और कहा कि प्रभु श्री राम के चरणों में मेरा प्रणाम देना और कहना यदि उन्हें आने में एक महीने से क्षण भर भी ज्यादा समय लिया तो वे उन्हें जीवित नहीं देख सकेंगें। माता सीता का संदेश लेकर हनुमान वापस समुद्र पार कर अन्य साथियों के पास पहुंच गए हनुमान की गर्जना और उनके चेहरे का तेज देखकर सब समझ गए हनुमान प्रभु श्री राम के काम को अंजाम देकर ही वापस लौटे हैं। सबकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। सभी वनों में उत्पात मचाते हुए सुग्रीव के पास चल पड़े सैनिकों ने वन उजाड़ने से रोका तो वे उन्हें पीटने लगे। सुग्रीव तक खबर पहुंची तो वे समझ गए कि ये अपने कार्य में सफल होकर ही पंहुचे हैं। सुग्रीव ये बातें सोच ही रहे थे कि सभी वानर समाज सहित वहां पहुंचे और सुग्रीव को बताया कि अकेले हनुमान ने ही यह कर दिखाया। उन्हें साथ लेकर सुग्रीव सीधे प्रभु श्री राम के पास पंहुचे उस समय भगवान श्री राम और लक्ष्मण दोनों एक शिला पर बैठे थे। सभी ने उनके चरणों में शीश नवाकर प्रणाम किया।