गायत्री मंत्र
गायत्री मंत्र हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए सबसे पवित्र मंत्र माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह वेदों का श्रेष्ठ मंत्र है। माना जाता है कि चारों वेदों का सार इस मंत्र में समाहित है। इस मंत्र में 24 अक्षर हैं जिन्हें 24 देवी-देवताओं का स्मरण बीज माना जाता है। यही 24 अक्षर वेद व शास्त्रों के ज्ञान का आधार भी बताये जाते हैं। आईये जानते हैं क्या है गायत्री मंत्र का सरल अर्थ।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
ऊँ का अर्थ है ईश्वर, भू: का अर्थ प्राणस्वरूप, भुव: दुखों का नाश करने वाला अर्थात दुखनाशक, स्व: सुख का स्वरुप अर्थात सुख स्वरूप, तत् का तात्पर्य है उस, सवितु: का अभिप्राय है तेजस्वी, वरेण्यं कहते हैं श्रेष्ठ को, भर्ग: का अर्थ लिया जाता है पापनाशक, देवस्य देवताओं का अर्थात दिव्य, धीमहि धारण करने को कहते हैं, धियो का मतलब है बुद्धि, यो का अर्थ जो, न: का तात्पर्य है हमारी, प्रचोदयात् को कहते हैं प्रेरित करें। अर्थात मंत्र का अभिप्राय हुआ उस प्राणस्वरुप, दु:ख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह ईश्वर हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करे।
कुल मिलाकर इस मंत्र में कहा गया है कि इस सृष्टि के रचनाकार प्राणस्वरुप उस प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करे, अर्थात हमारे अंदर सकारात्मक एवं आशावादी विचारों का सृजन हो जो सच्चाई व अच्छाई के रास्ते पर चलने के लिए हमारा मार्गदर्शन करे।
कब करें गायत्री मंत्र का जाप
गायत्री मंत्र का जाप चाहें तो चौबीसों घंटे किया जा सकता है लेकिन मुख्यत तीन समय गायत्री मंत्र का जाप करने की सलाह दी जाती है। सबसे पहले प्रात:काल सूर्योदय से थोड़ा पहले गायत्री मंत्र का जाप शुरु करना चाहिए व सूर्योदय तक मंत्र का जाप जारी रखें। इसके बाद दोपहर के समय भी गायत्री मंत्र का जाप किया जा सकता है। तत्पश्चात सूर्यास्त से थोड़ा पहले मंत्रोच्चारण करें व सूर्यास्त के बाद तक जारी रखें। इन तीन अवसरों के अलावा यदि गायत्री मंत्र का जाप करना चाहें तो मन ही मन गायत्री मंत्र का जाप कर सकते हैं।