छठ व्रत कथा
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पर्व(chhath) मनाए जाने का प्रावधान है। यह चार दिवसीय पर्व बिहार में प्रमुख पर्व के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा से हर तरह की समस्या से आप निजात पा सकते हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी के कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा-रानी बड़े दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ संपन्न होने बाद महर्षि ने मालिनी को खीर दी। खीर का सेवन करने से मालिनी गर्भवती हो गई और 9 महीने बाद उसने पुत्र को जन्म दिया लेकिन उसका पुत्र मृत जन्मा। इस बात का पता लगते ही राजा बहुत दुखी हुआ और निराशा की वजह से आत्महत्या करने का मन बना लिया, परंतु जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होने कहा कि मैं षष्ठी देवी हूं और मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे मन से मेरी पूजा करते हैं उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं। यदि राजन तुम मेरी विधिविधान से पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी के कहे अनुसार राजा प्रियव्रत ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी की पूरे विधिपूर्वक पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप रानी मालिनी गर्भवती हुई और उन्होंने एक संदुर पुत्र को जन्म दिया। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।
पौराणिक कथानुसार, महाभारत काल में जब जुए में पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। द्रौपदी के व्रत से प्रसन्न होकर षष्ठी देवी ने पांडवों को उनका राजपाट वापस दिला दिया था। इसी तरह छठ का व्रत करने से लोगों के घरों में सुख-समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। वहीं पौराणिक लोक कथा के मुताबिक, महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने सबसे पहले सूर्य देव की पूजा की थी और कहा जाता है कि घंटों पानी में खड़े होकर दानवीर कर्ण सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य देव की कृपा से कर्ण एक महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।