भगवान विष्णु
हिंदू ग्रंथों में सबसे महत्वपूर्व देवताओं में से एक हैं भगवान विष्णु (lord Vishnu) जिनको त्रिमूर्ति के सदस्य के रूप में पूजा जाता है। वह सबसे बड़े हिंदू संप्रदाय वैष्णवाद के सबसे महत्वपूर्ण देवता हैं। उन्हें नारायण और हरि के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार उन्हें संरक्षक और रक्षक के रूप में माना जाता है। उन्होंने धर्म की रक्षा और पृथ्वी को बचाने के लिए 10 अवतार लिए। विष्णु सत्त्वगुण का प्रतिनिधित्व करते हैं और यह केन्द्रित बल है क्योंकि यह सृष्टि के संरक्षण, संरक्षण और रखरखाव के लिए जिम्मेदार थे। व्युत्पत्ति के अनुसार, शब्द 'विष्णु' का अर्थ है, जो व्याप्त है, वह जो हर चीज में प्रवेश कर चुका है। वह आंतरिक कारण और शक्ति है जिसके द्वारा चीजें मौजूद हैं।
भगवान विष्णु का जन्म
शिवपुराण के अनुसार, जब पूरी सृष्टि में अंधकार था और न ही जल, वायु और अग्नि थी। तब केवल ब्रह्मरूपी भगवान सदा शिव थे और उन्होंने जगत जननी मां अम्बिका को प्रकट किया था। कहा जाता है कि सदाशिव और अंबिका ने सबसे पहले भगवान शंकर की उत्पत्ति की। उसके बाद सदा शिव ने अपने बांये अगर पर अमृत मला जिससे प्रकट हुए भगवान विष्णु, इसके बाद सदाशिव ने अपने दाहिने हाथ से एक दिव्य ज्योति प्रकट की और उसे विष्णु जी की नाभि में डाल दी कुछ समय बाद विष्णु की नाभि से ब्रह्मांड के रचयिता ब्रह्माजी प्रकट हुए।
श्रीहरि विष्णु का परिवार: कहा जाता है कि भगवान विष्णु का विवाह मां लक्ष्मी, सरस्वती और मां गंगा से हुआ था। हालांकि तीनों साथ में रहने के लिए राजी नहीं थी। इसलिए अंत में मां गंगा को भगवान शिव के पास और सरस्वती जी को भगवान ब्रह्मा के पास भेजा गया था। कुछ ग्रंथों में विष्णु की पत्नी पृथ्वी माता को भी कहा गया है।
आपने भगवान हरि को शेषनाग की सैय्या पर लेटे और मां लक्ष्मी द्वारा उनके पैरों के दबाते हुए चित्रों में देखा होगा। भगवान विष्णु का शेषनाम पर विश्राम करने का मतलब है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कई सारी समस्याएं आती हैं लेकिन उनसे शांत मन से उनका सामना करना चाहिए। वहीं उनके शरीर के नीला रंग और चार हाथ उनकी सर्वव्यापीता और शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके निचले बाएं हाथ में कमल का फूल, दाएं हाथ में गदा, उनके ऊपरी बाएं हाथ में शंख और उनके ऊपरी दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र है, भगवान विष्णु दिव्यता के प्रतीक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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भगवान विष्णु के दशावतार
- मत्स्य अवतार : पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब असुर हयग्रीव का आतंक बढ़ गया था और पूरी धरती जलमग्न हो गई थी तब भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था और हयग्रीव का वध करके धरती को जन्म से निकाला था।
- कूर्म अवतार : जब सतयुग में देव और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो भगवान विष्णु कछुए के रूप में अवतरित हुए। उन्होंने अपनी पीठ को मंदार पर्वत के विश्राम के लिए दिया था। इसके बाद पर्वत को मथनी के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
- वराह अवतार: भगवान विष्णु ने राक्षण हिरण्याक्ष का वध किया था। उससे वेदों को बरामद किया था और पृथ्वी को समुद्र से बाहर निकाला था।
- नृसिंह अवतार: भक्त प्रहलाद के पिता राक्षस हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए श्रीहरि ने नरसिंह अवतार लिया था, जो आधा सिंह और आधा आदमी था।
- वामन अवतार: असुरों के राजा बलि के अंहकार नष्ट करने के लिए श्रीहरि ने वामन अवतार लिया था। उन्होंने तीन पग से धरती, स्वर्ग और पाताल को नाप लिया था।
- परशुराम अवतार: उन्होंनेप्राचीन हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य का वध किया, जिन्होंने पवित्र गाय कामधेनु को चुरा लिया था, जो सभी इच्छाओं को पूरा कर सकती थी।
- मर्यादा पुरुषोत्तम राम: त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया लंकापति रावण का वध करने के लिए, जिसने सीता का अपहरण किया था। श्रीराम के बारे में अधिक जानने के लिए रामायण का पाठ करें।
- श्रीकृष्ण: द्वापरयुग में मथुरा के अत्याचारी राजा कंस का वध करने के लिए श्रीहरि ने भगवान कृष्ण का अवतार लिया था। महाभारत में भी उन्होंन अर्जुन के सारथी के रूप में धर्म की स्थापना की।
- बुद्ध अवतार: कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने दुनिया से दुख दूर करने के लिए बुद्ध अवतार लिया। उन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की। हालांकि कुछ हिंदू बुद्ध को विष्णु अवतार के रूप में देखने का विरोध कर सकते हैं, लेकिन कई अन्य हिंदू वास्तव में बुद्ध को बहुत मानते हैं और बौद्ध मंदिरों में हिंदू मंदिरों की तरह बुद्ध की पूजा करते हैं।
- कल्कि अवतार: भगवान विष्णु का 10वां अवतार कल्कि होगा जो कलियुग के अंत में अवतरित होगा। जब धरती पर अधर्म और हिंसा बढ़ जाएगी तब श्रीहरि प्रकट होंगे।
भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के उपाय
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प्रत्येक गुरुवार को स्नानादि के बाद भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाकर आरती करनी चाहिए और तुलसी के पत्तों या कमल के फूलों से उनकी पूजा करना अत्यधिक लाभकारी माना जाता है।
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पीले वस्त्र, पीले फूल, धूप, घी का दीपक और पीले भोग से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जाता है।
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स्वास्थ्य, खुशी और समृद्धि लाने के लिए प्रतिदिन विष्ण मंत्र(ऊँ नमों नाराणाय, ऊँ नमों भगवते वासुदेवाय) का जाप करना चाहिए। साथ ही विष्णु जी की द विष्णुसहस्रनाम और चालीसा का भी पाठ करना शुभ माना जाता है।
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